ओरछा का इतिहास | History of Orchha in Hindi
ओरछा मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड में बेतवा नदी के किनारे स्थित एक सूंदर शहर है जो जिला टीकमगढ़ के अंतर्गत आता है। यह दुनिया का पहला शहर है ... जहाँ भगवान राम को भगवान के रूप में नहीं बल्कि राजा राम के रूप में पूजा जाता है।Translate This Page:
यह शहर अपने भव्य मन्दिरों और किलों के लिये पुरे विश्व में विख्यात है। यहां के भव्य मन्दिरों और किलों को देखने हर रोज हजारों की तादाद में पर्यटक पहुंचते हैं। भव्य किलों और सूंदर मन्दिरों के अलावा ओरछा की एक और जगह है जो ओरछा को पर्यटकों के बीच सबसे अलग दर्शाती है, और वह है राजा राम मंदिर। जी हां, जिन्हें भगवान के रूप में नहीं बल्कि राजा राम के रूप में पूजा जाता है।
राजा राम को समर्पित यह मंदिर बहुत सूंदर और आलिशान बना हुआ है। यह मंदिर देखने में एकदम महल जैसा लगता है।
इतिहास | History
मध्य काल में यहाँ परिहार राजाओं की राजधानी थी। मुग़ल बादशाह अकबर में यहाँ के राजा मधुकर शाह थे, जिन्होंने मुग़लों के साथ कई युद्ध किए थे। औरंगज़ेब के काल में छत्रसाल की शक्ति बुन्देलखण्ड में बड़ी हुई थी। ओरछा के राजाओं ने कई हिन्दी कवियों को आश्रय भी प्रदान किया था।परिहार राजाओं के बाद ओरछा चन्देलों के अधिकार में रहा था। चन्देल राजाओं के पराभव के बाद ओरछा श्रीहीन हो गया। उसके बाद में बुंदेलों ने ओरछा को राजधानी बनाया और इसने पुनः अपना गौरव प्राप्त किया।
बुंदेलो का राज्यकाल 1783 में खत्म होने के साथ ही ओरछा भी गुमनामी के घने जंगलों में खो गया और फिर यह स्वतंत्रता संग्राम के समय सुर्खियों में आया। दरअसल, स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद यहां के एक गांव में आकर छिप गए थे। आज भी उनके ठहरने की जगह पर एक स्मृति चिन्ह बना हुआ है।
रामराजा मंदिर की कहानी | History of Ramraja Temple Orchha in Hindi
इसका इतिहास 15वीं शताब्दी से शुरू हुआ था, जब इसकी स्थापना रुद्र प्रताप सिंह जू बुन्देला ने की थी जो सिकन्दर लोदी से भी लड़ चूका था इस जगह की पहली और सबसे रोचक कहानी रामराजा मंदिर की है। महाराज मधुकरशाह कृष्ण भक्त थे और महारानी कुंअर गनेश रामभक्त थी। रानी गनेश कुंवर वर्तमान ग्वालियर जिले के करहिया गांव की राजपूत थीं। एक दिन महारानी और राजा के बीच अपने दो आराध्य देव की प्रशंसा और उनके दर्शनों को लेकर बहस हुई। राजा ने महारानी कुंअर गनेश को चुनौती देते हुए कहा कि अगर अपने आराध्यदेव की इतनी बड़ी भक्त हो तो अपने राम को अयोध्या जाकर ले क्यों नहीं आती। उन्होंने अपने पति से अपने इष्ट देव को लेकर आने का प्रण किया और कहा कि अगर वह अपने इष्ट देव को लेकर आने मे असफल हुई तो अयोध्या में ही अपने प्राण त्याग देगी।
इसके बाद महारानी ओरछा से निकल कर अयोध्या की और चल पड़ी। महारानी अयोध्या में सरयू नदी के किनारे तपस्या करने बैठ गई। 7 दिनों की कठोर तपस्या के बाद जब भगवान राम के दर्शन महारानी को नहीं हुए तो उन्होंने सरयू नदी में अपने प्राण देने का निष्चय किया। तभी भगवान् राम बाल रूप में प्रकट हुए और महारानी को दर्शन दिए। महारानी ने उनसे ओरछा चलने को कहा और भगवान् राम भी ओरछा चलने को राज़ी हो गए लेकिन भगवान् राम ने महारानी के सामने अपनी तीन शर्ते रखी। पहली शर्त यह थी की जहा हम जा रहे है वहा के हम राजा होंगे दूसरी शर्त हम आपके साथ ओरछा पैदल चलेंगे वो भी मुख्य नक्षत्र में जो महीने में एक बार आता है और तीसरी शर्त की अगर हम एक बार कही बैठ गए तो उठेंगे नहीं।
महारानी ने उनकी शर्ते मान ली और भगवान् राम मूर्ति स्वरुप उनकी गोद में बैठ गए और रानी मुख्य नक्षत्र में ओरछा की और चल पड़ी। महारानी 8 माह और 28 दिनों में सिर्फ मुख्य नक्षत्र मे पैदल चलकर ओरछा पहुंची। ओरछा पहुंचने से भगवान् राम ने महाराज मधुकरशाह को सपना दिया की रानी भगवान् राम को लेकर ओरछा आ रही है तब महाराज ने भगवान् राम के लिए मंदिर बनवाने का काम आरम्भ करवा दिया जिसे आज हम उस मंदिर को चतुर्भुज मंदिर के नाम से जानते है।
महारानी भगवान राम को लेकर मंदिर बनने से पहले पहुंच गयी जिससे महारानी भगवान् राम को अपने महल ले आई और अपने महल के भोजन कक्ष जिसे हम किचेन(रसोई घर) कहते है वहा ले आई और कुछ समय के लिए मूर्ति को महल के भोजन कक्ष में स्थापित किया गया। लेकिन जब मंदिर बनकर तैयार हुआ तब मूर्ति की स्थापना के लिए जब मूर्ति को उठाया गया तो मूर्ति अपने जगह से हिली ही नहीं इसे ईश्वर का चमत्कार मानते हुए महल को ही मंदिर का रूप दे दिया गया और इसका नाम रखा गया राम राजा मंदिर।
जिसे आज हम राम राजा मंदिर कहते है तभी से भगवान श्रीराम, जानकी जी और लक्ष्मन जी की मूल प्रतिमाएं ओरछा के रामराजा मंदिर मे विराजमान हैं।
आज इस महल के चारों ओर ओरछा शहर बसा है और राम नवमी पर यहां हजारों श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं। वैसे, भगवान राम को यहां भगवान मानने के साथ-साथ यहां का राजा भी माना जाता है, क्योंकि उस मूर्ति का चेहरा मंदिर की ओर न होकर महल की ओर है।आज भी भगवान राम को राजा के रूप में(राम राजा सरकार) ओरछा के इस मंदिर में पूजा जाता है और उन्हें गार्डों की सलामी देते हैं।
444 वर्ष पुरानी परम्परा के अनुसार भगवान श्रीराम को प्रतिदिन सुबह और शाम सशस्त्र बल द्वारा उन्हें ‘‘गार्ड आफ ऑनर’’देने की परम्परा का पालन राज्य सरकार द्वारा किया जाता है। रामनवमी और विवाह पंचमी के तीन दिनों तक के लिए भगवान श्रीराम प्रभु और सीता सिंहासन को छोडकर दालान मे झूला पर बिराजमान होकर सामान्य लोगों को दर्शन देते हैं और इन्हीं तीन दिन सुबह पांच बजे मंगला आरती में हजारों लोग शामिल होते हैं।
ओरछा के महलो की कहानी | History of Orchha Fort in Hindi
मंदिर के पास एक बगान है जिसमें स्थित काफी ऊंचे दो मीनार (वायू यंत्र) लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं। जि्न्हें सावन भादों कहा जाता है इनके नीचे बनी सुरंगों को शाही परिवार अपने आने-जाने के रास्ते के तौर पर इस्तेमाल किया करते थे। इन स्तंभों के बारे में एक किंवदंती प्रचलित है कि वर्षा ऋतु में हिंदु कलेंडर के अनुसार सावन के महीने के खत्म होने और भादों मास के शुभारंभ के समय ये दोनों स्तंभ आपस में जुड़ जाते थे। हालांकि इसके बारे में पुख्ता सबूत नहीं हैं। इन मीनारों के अंदर नीचे जाने के रास्ते बंद कर दिये गये है।इन मंदिरों और महलो के पास ओरछा का दशकों पुराना पुल भी है जो शहर को बाहरी इलाके से जोड़ता है। यहां चार महल, जहांगीर महल, राज महल, शीश महल और इनसे कुछ दूरी पर बना राय परवीन महल हैं। इनमें से जहांगीर महल के किस्से सबसे ज्यादा मशहूर हैं, जो मुगल बुंदेला की दोस्ती का प्रतीक है।
कहा जाता है कि बादशाह अकबर ने अबुल फज़ल को शहजादे सलीम (जहांगीर) को काबू करने के लिए भेजा था, लेकिन सलीम ने बीर सिंह की मदद से उसका कत्ल करवा दिया था। इससे खुश होकर सलीम ने ओरछा की कमान बीर सिंह को सौंप दी थी। वैसे, ये महल बुंदेलो की वास्तुशिल्प कला का प्रमाण हैं। खुले गलियारे, पत्थरों वाली जाली का काम, जानवरों की मूर्तियां, बेलबूटे जैसी तमाम बुंदेला वास्तुशिल्प कला की विशेषताएं यहां साफ देखी जा सकती हैं।
हरदौल की कहानी - Hardaul ki kahani
अब बेहद शांत दिखने वाले ये महल अपने जमाने में इतने शांत नहीं थे। यहां रोजाना होने वाली हलचल और उनकी कहानियां आज भी लोगों की जुबान पर हैं। इन्हीं में से एक है हरदौल की कहानी, जो जुझार सिंह (1627-34) के राज्य काल की है। दरअसल, मुगल जासूसों की साजिश भरी कथाओं के कारण् इस राजा को शक हो गया था कि उसकी रानी के उसके भाई हरदौल के साथ संबंध हैं। लिहाजा उसने रानी से हरदौल को ज़हर देने को कहा। रानी के ऐसा न कर पाने पर खुद को निर्दोष साबित करने के लिए हरदौल ने खुद ही जहर पी लिया और त्याग की नई मिसाल कायम की।
ओरछा में घूमने लायक जगह - Places to visit in Orchha
रामराजा मंदिर | Ramraja Temple Orchha
यह मंदिर ओरछा का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है यहाँ हज़ारो की संख्या में पर्यटक देश विदेश से यहाँ राजा राम के दर्शन के लिए आते है।
जहांगीर महल | jahangir mahal orchha
बुन्देलों और मुगल शासक जहांगीर की दोस्ती की यह निशानी ओरछा का मुख्य आकर्षण है। महल के प्रवेश द्वार पर दो झुके हुए हाथी बने हुए हैं। तीन मंजिला यह महल जहांगीर के स्वागत में राजा बीरसिंह देव ने बनवाया था। वास्तु कारीगरी की दृष्टि से यह अपने जमाने का उत्कृष्ट उदाहरण है।
राज महल ओरछा | Orchha Fort
यह महल ओरछा के सबसे प्राचीन स्मारकों में एक है। इसका निर्माण मधुकर शाह ने 17 वीं शताब्दी में करवाया था। राजा बीरसिंह देव उन्हीं के उत्तराधिकारी थे। यह महल छतरियों और बेहतरीन आंतरिक भित्तिचित्रों के लिए प्रसिद्ध है। महल में धर्म ग्रन्थों से जुड़ी तस्वीरें भी देखी जा सकती हैं।
राय प्रवीण महल ओरछा | Rai Praveen Mahal Orchha
यह महल राजा इन्द्रमणि की खूबसूरत गणिका प्रवीणराय की याद में बनवाया गया था। वह एक कवयित्री और संगीतकारा थीं। मुगल सम्राट अकबर को जब उनकी सुंदरता के बार पता चला तो उन्हें दिल्ली लाने का आदेश दिया गया। इन्द्रमणि के प्रति सच्चे प्रेम को देखकर अकबर ने उन्हें वापस ओरछा भेज दिया। यह दो मंजिला महल प्राकृतिक बगीचों और पेड़-पौधों से घिरा है। राय प्रवीन महल में एक बड़ा हाल और चेम्बर है।
लक्ष्मीनारायण मंदिर ओरछा | Laxmi Narayan Temple Orchha
इस मंदिर की स्थापना 1622 ई. में बीरसिंह देव द्वारा की गई थी। यह मंदिर ओरछा गांव के पश्चिम में एक पहाड़ी पर बना है। इस मंदिर में 17वीं और 19वीं शताब्दी के चित्र बने हुए हैं। चित्रों के चटकीले रंग इतने जीवांत लगते हैं जैसे उन चित्रों को हाल ही में बनाया गया हों। मंदिर में झांसी की लड़ाई के दृश्य और भगवान कृष्ण की आकृतियां बनी हुई हैं।
चतुर्भुज मंदिर ओरछा | Chaturbhuj Mandir Orchha
राज महल के पास स्थित चतुर्भुज मंदिर ओरछा के मुख्य आकर्षण का केंद्र है। यह मंदिर चार भुजाधारी भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 1558 से 1573 के बीच राजा मधुकर ने करवाया था। मंदिर में प्रार्थना के लिए बड़ा हॉल है जहां कृष्ण भक्त एकत्रित होते हैं। ओरछा में यह स्थान घूमने के लिए बहुत अच्छी जगह है।
फूलबाग ओरछा | Phool Bagh Park in Orchha
बुन्देला राजाओं द्वारा बनवाया गया यह फूलों का बगीचा चारों ओर से दीवारों से घिरा है। पालकी महल के पास स्थित यह बगीचा बुन्देल राजाओं का आराम करने का स्थान था। वर्तमान में यह पिकनिक स्थल के रूप में जाना जाता है। फूलबाग में एक भूमिगत महल और आठ स्तम्भों वाला मंडप है। यहां के चंदन कटोर से गिरता पानी झरने के समान प्रतीत होता है।
सुन्दर महल ओरछा | Sunder Fort Orchha
इस महल को राजा जुझार सिंह के पुत्र धुरभजन ने बनवाया था। राजकुमार धुरभजन को एक मुस्लिम लड़की से प्रेम था। उन्होंने उससे विवाह कर इस्लाम धर्म अपना लिया। धीरे धीरे उन्होंने शाही जीवन त्याग दिया और स्वयं को ध्यान और भक्ति में लीन कर लिया। विवाह के बाद उन्होंने सुन्दर महल त्याग दिया। धुरभजन की मृत्यु के बाद उन्हें संत के रूप में जाना गया। वर्तमान में यह महल काफी क्षतिग्रस्त हो चुका है।
ओरछा कब जाना चाहिए – Best Time To Visit Orchha
ओरछा की यात्रा के लिए अक्टूबर से मार्च का समय सबसे अच्छा है। हालाँकि, आप मानसून के दौरान भी जा सकते हैं क्योंकि बारिश यहाँ औसतन होती है। दशहरा के त्यौहारों के दौरान और सर्दियों में जब मौसम सुहावना होता है तो ओरछा के ऐतिहासिक और स्थापत्य की झलक देखने के लिए यह एक आदर्श समय होता है। ग्रीष्मकाल अत्यधिक तापमान को आमंत्रित करता है और आमतौर पर यात्रियों द्वारा बचा जाता है।
कैसे पहुंचें ओरछा:-
ओरछा झांसी रेलवे स्टेशन से 18 किलोमीटर दूर है और यहां नियमित बस सेवाएं के जरिए आसानी से पहुंचा जा सकता है।
हवाई मार्ग से:-
ओरछा का नजदीकी हवाई अड्डा खजुराहो है जो 163 किलोमीटर की दूरी पर है। यह एयरपोर्ट दिल्ली, वाराणसी और आगरा से नियमित फ्लाइटों से जुड़ा है।
रेल मार्ग से:-
झांसी रेलवे स्टेशन ओरछा का नजदीकी रेलवे स्टेशन है। दिल्ली, आगरा, भोपाल, मुम्बई, ग्वालियर आदि प्रमुख शहरों से झांसी के लिए अनेक रेलगाड़ियां हैं। वैसे ओरछा तक भी रेलवे लाइन है जहां पैसेन्जर ट्रैन से पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग से:-
ओरछा झांसी-खजुराहो मार्ग पर स्थित है। नियमित बस सेवाएं ओरछा और झांसी को जोड़ती हैं। दिल्ली, आगरा, भोपाल, ग्वालियर और वाराणसी से यहां के लिए नियमित बसें चलती हैं।
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